कोरोना काल
आपाधापी जीवन की
कहाँ गई अब बीत
रुकी सी यह जिंदगी
लगने लगी है ठीक
दो वक्त की रोटी पाना
दो जोड़ी कपड़ो की दरकार
दिन बने महिने अब तो
पर ना पीड़ा का अहसास
संग साथ का घरवालो में
जो अबतक था आभाव
मिलजुल कर सब निबट रहें है
घर के सारे काज
माया की ना चाह किसी को
बस चाहे स्वस्थ तन आज
भुल गए सब बिमारी अब तो
बस है ईक महामारी याद
गोल गप्पें, चाट पापडी
बिसरे पीज्जा बरगर केक
माल,सिनेमा पापकार्न की
चाहत हटी अनेक
गाडी अब ना मांगे ईंधन
ना घूमण की रेलमपेल
काशी मथुरा बना घरौंदा
खुशदिल रहे सब एक