#कोरोना काल
#कोरोना काल
साँस रोकले जकड़ फेफड़े,रोग संक्रमण का आया।
कोरोना नाम वायरस का,घातक सबने बतलाया।
दवा नहीं है हवा यही है,साँसों से बढ़ता जाए;
चीन देश से आया भारत,गाँव शहर को दहलाया।
घूम रहा जग कोने-कोने,दुनिया दहशत में सारी।
देख सोच हैरान सभी हैं,मौत बाँटती बीमारी।
तालाबंदी हुई देश में,घर में लोग हुए क़ैदी;
रोज़गार भी छीन लिए दे,भूख ग़रीबी लाचारी।
बच्चों की छीन पढ़ाई को,रहा डराता कोरोना।
कमज़ोर अर्थव्यवस्था की,पड़ा देश को कुछ खोना।
होगा कोरोना को-रोना,कई वर्ष विपदा ढ़ोना,
कोरोना का काल रहेगा,मुश्क़िल इतिहास मिटोना।
वैक्सीन मास्क़ दो ग़ज दूरी,बचने को अभी ज़रूरी।
जाति धर्म का नहीं हितैषी,शत्रु जाति मानव पूरी।
लिए बुराई अच्छाई भी,यही सीख कोरोना की;
नैतिकता का पाठ पढ़ाया,जोड़ी है सीख अधूरी।
स्वच्छ वायु जल थल हैं पाएँ,सोचो समझो गर मानो।
भाव निकल सहयोगी आए,मानवता जीती जानो।
धार्मिक आडंबर झूठे हैं,ख़ुद की रक्षा ख़ुद करना;
पैग़ाम नूर का कोरोना,संदेश सही पहचानो।
डर में संस्कारी हो जाते,सबसे हैं प्रीत निभाते।
दान करें हम मान करें हम,सेवा धर्म निभाते।
माने कहना जाने रहना,रिश्ते-नाते सब सीखें;
कोरोना काल कहे ‘प्रीतम’,सबको बात मुस्क़ुराते।
#सर्वाधिकार सुरक्षित रचना
#कवि-आर.एस.’प्रीतम’