कोरोना काल
जज्बातों का खेल निराला, खेल रहा है खेलने वाला।
कांप रही है धरती सारी, कांप रहा इंसा मतवाला।।
नहीं कभी जो रुक सकता था, आज बंद है घर में सारा।
जज्बातों का खेल निराला, समय अभी यह ऐसा आया।।
कांप रहा है अब जग सारा, कांप रही है दुनिया सारी।
दर्द देखकर मन ही मन में, कांप रही है रूह हमारी।।
जज्बातों का खेल निराला, घबराने से काम चलेना।
पूजा पाठ करो बस घर में, मन को स्थिर करके देखो।
सारे दुख संताप मिटेंगे, वेद पुराण तुम पढ़ कर देखो।।
नाम गुरु का जप कर देखो, शक्ति का संचार मिलेगा।
जज्बातों का खेल निराला, समय दिया है उसने तुमको।।
याद उसे तुम करके देखो, रहो सुरक्षित घर में अपने।
सरकारों का काम करो ना, बहुत मचाली आपाधापी।।
अब तो घर में रुक के देखो, नाम प्रभु का जप कर देखो।
जज्बातों का खेल निराला, डॉक्टर पुलिस और सेवा कर्मी।।
इनको काम तो करते देखो, अपना जीवन दाव पर रखकर।
राष्ट्र समर्पित भाव को देखो, घबरा कर ना मर कर देखो।।
जज्बातों का खेल निराला, देख रहा है देखने वाला।
डर के इधर-उधर ना भागो, डर का ना माहौल बनाओ।।
डर को अपने अंदर राखो, डर को ना तुम बाहर दिखाओ।
रहे सुरक्षित तो कल मिलेगा, असुरक्षा का नाम माहौल बनाओ।।
जज्बातों का खेल निराला….
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“ललकार भारद्वाज”