कोई तो मरहम लगा दो
होकर नाशाद, आवारा मैं,
फिर रहा हूं खूनी राहों पर
अरे कोई तो मरहम लगा दो,
मेरे टूटे दिल के घावों पर …
मैं कौन हूं कैसा हूं
यह तक मुझको पता नहीं
हमें बेशक ठहराओ गुनहगार
पर इसमें दिल की मेरे खता नहीं
सामने आग का दरिया है
और मैं हूं टूटी फूटी नावों पर
अरे कोई तो मरहम लगा दो
मेरे टूटे दिल के घावों पर …