कैसे कहें घनघोर तम है
गीत
कैसे कहें घनघोर तम है
सुनें व्यंजना मन है पल है
कौंध रहीं जो बिजली सारी
गरजा, बरसा, बिखरा जल है।
प्रतिध्वनि में ये गूंज किसकी
देख,भर रहा है कौन सिसकी
थाल आरती का लाई बदरी
फिर भी यहाँ उथल पुथल है।
बजती घण्टी, नाद शँख का
अंग अंग प्रतिदान अंक का
कह रही क्यों चारों दिशाएं
रिक्त आचमन, तल ही तल है।।
लबों पर सजी है अर्चना
तोड़ दी हैं सारी वर्जना
देख रहा यूँ हरि भी नभ से
धरती पर तो कल ही कल है।।
कोलाहल में फिर क्यों कौंधे
बिजलियाँ यहाँ मन की तन की
सबकी अपनी, यही व्यथा है
प्यासी धरती, नयन सजल है।।
सूर्यकांत द्विवेदी