कैसा अजब जमाना आया
कैसा अजब जमाना आया रे
न रिश्ते न नाते रहे,
न रीति रिवाज संस्कार।
अपनी-अपनी सबको पड़ी
नित टूट रहे परिवार।
न मेले न हिंडोले रहे,
न काम के झमेले रहे।
न घुंघट में नारी रहे,
न पनघट पनिहारी रहे।
न कहीं ढोल- ताशे दिखे,
न सुनी बंझली की तान।
न कहीं गंगी टप्पे सुने,
न मधुर बांसुरी की तान।
सिर की चुनर कांधे पर आई,
पहचानी न जाए बेटी -लुगाई।
अर्धनग्न सी फिरती नारी,
मुख पर भाषा फिरंगी आई।
मात-पिता वृद्ध आश्रम जाते,
कुत्ते -बिल्ली को अपनाया।
लहू के टूटे रिश्ते- नाते,
कैसा अजब जमाना आया।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश