के लिए
कभी तमाम वजहें भी नाकाफी होती है किसी को पाने के लिए
फकत एक वजह ही काफी होती है जां गवांने के लिए,
मैं सोचता हूं कि कब जिऊँगा अपनी खातिर
कितने तमाशे करने पड़ते हैं जमाने के लिए,
बहुत हँसता हँसाता है वो शख्स जो तन्हा होता है
सबकी नजरों में खुद को खुश दिखाने के लिए,
चाय, शराब,सिगरेट वो कुछ भी तो नहीं पीता
सोचता हूं क्या शुरू करेगा तुझको भुलाने के लिए,
एक अजीब से मोड़ पर आ कर वो सोच में पड़ा है
हल्दी या घी वो क्या चुने अब नहाने के लिए
मन्नत, मिन्नत, खुशामद, इल्तजा या कुछ और
अब तुम ही कहो क्या करे वो तुम्हें पाने के लिए,