*केले खाता बंदर (बाल कविता)*
केले खाता बंदर (बाल कविता)
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दस-दस केले खाता बंदर
छिलके वहीं गिराता बंदर
बल खाती बंदरिया आई
रपटी छिलके पर टकराई
सिर फूटा तो शोर मचाया
बंदर को डॉंटा-समझाया
केले चाहे जितने खाओ
छिलके लेकिन नहीं गिराओ
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451