कृष्ण काव्य धारा एव हिंदी साहित्य
कृष्ण काव्य धारा एवं हिन्दी साहित्य –
लीला रूप सौंदर्य और प्रेम का जैसा चित्रण किया है कृष्ण काव्य का सर्वश्रेष्ठ सृजन शील स्वर सुर दास जी है ।
सरस संगीत और गीतात्मक सौंदर्य के साथ कृष्ण केंद्रित वात्सल्य बाल लीला भ्रमर गीत में जीवन की संवेदना और उत्सव विद्यमान है कृष्ण काव्य परम्परा के सुर दास जी प्रतिनिधि है।
हिंदी साहित्य का इतिहास एवं कृष्ण काव्य-
हिंदी साहित्य का इतिहास –
हिंदी साहित्य के इतिहास को तीन भागों में बांटा जा सकता है –
1-आदि काल 1050 से 13 75
2- मध्य काल 1375 से 1900
3-आधुनिक काल 1900 से आगे।
मध्य काल के दो प्रमुख भाग है
क- भक्ति काल
(सन1375 से सन1700 )
ख – रीतिकाल
(सन1700 से सन1900)
भक्ति काल के दो भाग है-
(क)
निर्गुण काव्य धारा
(
ख)
सगुण काव्य धारा
निर्गुण काव्य धारा में
(क)
सूफी काव्य धारा
(ख)
संत कव्य धारा।
सगुण काव्य धारा में
(क)
राम काव्य धारा ।
(ख)
कृष्ण काव्य धारा ।
रीति काल 1700 से 1900 इसे तीन भागों में बिभक्त किया जा सकता है –
(क)
रीति बद्ध काव्य धारा।
(ख)
रीति सिद्ध काव्य धारा ।
(ग)
रीत मुक्त काव्य धारा।
भक्ति काल मे प्रवाहित निर्गुण एव सगुण काव्य धारा के अन्तर्ग त सगुण काव्य धारा की श्रृंखला है कृष्ण काव्य धारा।
कृष्ण काव्य की विशेषताए-
कृष्ण काव्य धारा के अष्ट छाप कवियों का विशेष योगदान है वल्लभाचार्य ने पुष्टिमार्ग की स्थापना की विट्ठलनाथ ने अष्ट छाप की स्थापना की अष्ट छाप में विशिष्ट आठ कवि है
कुम्भन दास, सूरदास ,परमानंद दास,कृष्ण दास ,गोविंद स्वामी,छित स्वामी,नंददास एव चतुर्भुज दास
इनमें से प्रथम चार वल्लभाचार्य के शिष्य थे एव शेष विठ्ठल दास के शिष्य थे अष्ट छाप की स्थापना 1565 में हुई थी।
1-कुभन दास-
चौरासी वैष्णव वार्ता गोस्वामी गोकुल नाथ में अष्ट छाप के प्रमुख कवि के विषय मे प्रमाण मिलता है वैसे कोई स्वतंत्र नही मिलती।
2-सूरदास-
कृष्ण काव्य धारा के सर्वाधीक लोकप्रिय कवि माने जाते हैं जिनकी तीन प्रमाणिक रचनाये सुर सागर ,सुर सारावली,तथा साहित्य लहरी इनके पद श्रृंगार एव वात्सल्य से ओत प्रोत है।
3-परमानंद दास-
वल्लभाचार्य के शिष्य परमानंद दास जी की रचनाएं परमानंद सागर में मिलते है।
4-कृष्णदास-
वल्लभाचार्य के शिष्य थे इनके कुछ फुटकर पद्य ही उपलब्ध है।
5-नंददास-
कृष्ण काव्य धारा के प्रमुख कवि एव विठ्ठल दास के शिष्य थे सुर दास के बाद इनको कृष्ण काव्य धारा का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है इनकी प्रमुख रचनाओं में रास पंचाध्यायी ,रूप मंजरी,रसमंजरी आदि है।
6-चतुर्भुज दास-
विठ्ठल दास के शिष्य थे इनका कोई स्वतंत्र ग्रंथ नही है ।
अष्ट छाप कवियों के अतिरिक्त कृष्ण काव्य के महत्वपूर्ण कवियों में रहीम,रसखान मीराबाई तुलसी दास प्रमुख है।
रहीम –
अकबर के दरबारी कवि थे इनका प्रमुख ग्रंथ है बरवै नायिका भेद व ज्योतिष ग्रंथ ।
रसखान-
कृष्ण काव्य श्रृंखला के महत्वपूर्ण कवि इनकी प्रमुख रचनाओं में प्रेम वाटिका ,सुजान रसखान है।
मीरा बाई-
कृष्ण काव्य की महत्वपूर्ण कवित्री जिनके काव्य में विरह वेदना है जो सम्पूर्ण हिंदी साहित्य में बेजोड़ है इनकी महत्वपूर्ण रचनाओं में गीत गोविंद की टीका ,नरसी जी का मोहरा, मल्हार राग आदि।
तुलसीदास-
रामकाव्य धारा के प्रमुख महत्वपूर्ण कवि तुलसी दास जी ने भी कृष्ण भक्ति रचनाये लिखी है कृष्ण गीतावली कृष्ण काव्य परम्परा में है।
कृष्ण काव्य के सभी कवियों चाहे किसी भी भाषा बोली से सम्बंधित हो ने कृष्ण को ब्रह्म माना है।
सर्वश्रेष्ठ सर्वगुण सम्पन्न सर्वशक्तिमान एव सर्वदाता माना है जिसके अनुसार सृष्टि में सब कुछ कृष्ण मय कृष्ण के द्वारा ही है कृष्ण सर्वव्यापी एव सर्वत्र है।
श्रीमद्भागवत पुराण कृष्ण भक्ति का मूल स्रोत है कुछ स्थानों में कृष्ण के मानव रूप का वर्णन है एव कुछ स्थानों पर अवतार रूप का वर्णन है मानव रूप में कृष्ण यशोदा के पुत्र ग्वाल वालो के सखा तथा गोपियों के प्रेमी है अधिकांश कृष्ण काव्य में इन्ही का वर्णन मिलता है बीच बीच मे कृष्ण के अवतारी स्वरूप का वर्णन है जिसमे विराट स्वरूप में उन्हें तीनो लोको का स्वामी मानते है।
सभी कृष्ण काव्य में चाहे किसी भाषा बोली में रची गयी हो कृष्ण लीलाओं का बहुत सुंदर वर्णन है ब्रज मण्डल को कृष्ण लीला की भूमि मानी जाती है यही पर भगवान कृष्ण ने बिभन्न लीलाएं की कृष्ण काव्य श्रृंखला के अंतर्गत किसी भी कवि द्वारा किया गया वर्णन पुराणों पर आधारित है ।
कृष्ण काव्य का उपजीव्य ग्रंथ भागवत पुराण है बल्लभाचार्य ने आदेश दिया कि भागवत के दशम स्कंध को आधार मानकर कृष्ण लीलाओं का वर्णन करे सही है कि कृष्ण काव्य धारा के कवियों ने भागवत पुराण को आधार मानकर रचनाओं का सृजन किया था फिर भी उनकी मौलिकता सर्वत्र है कृष्ण निर्लिप्त है और गोपियों के आग्रह पर लीलाओं में हिस्सेदार होते है किंतु कृष्ण काव्य परम्परा के कवियों द्वारा कृष्ण का स्वंय आकर्षण गोपियों की तरफ वर्णित है।
सगुण पर निर्गुण की विजय वर्णित है तो कृष्ण काव्य धारा के कवियों द्वारा निर्गुण पर सगुण की विजय वर्णित है भागवत पुराण में कृष्ण के ब्रह्म स्वरुपों का वर्णन है जबकि कृष्ण काव्य के कवियों द्वारा कृष्ण को सामान्य मानव मानकर आपने भवों की अभिव्यक्ति की है।
भक्ति भवना-
भक्ति भवना कृष्ण काव्य की प्रमुख प्रबृत्ति है जिसे कृष्ण काव्य धारा के कवियों द्वारा बिभन्न स्वरूपों में अभिव्यक्त किया गया है जो नवधा भक्ति के सिंद्धान्तों पर आधारित है फिर भी मुख्यतः वात्सल्य संख्य ,एव दाम्पत्य भाव की है।गोपियाँ ने कृष्ण प्रेम में सब कुछ त्याग कर दिया जो दाम्पत्य भक्ति की श्रेणी में आता है मीरा बाई ने दाम्पत्य श्रेणी की भक्ति की है कृष्ण सुदामा प्रसंग संख्य भक्ति है सुर दास जी ने वाल लीलाओं का वर्णन किया है जिसके कारण उन्हें वात्सल्य सम्राट कहा गया है कही कही दास्य भक्ति भी आती है ।
सुर दास जी ने लिखा है
#प्रभु हौं सब पतितन को टिको और पतित सब दिवस चारी के हौं तो जन्मत ही को#
माधुर्य भक्ति में श्रृंगार के सुंदर परिपाक है
#जब ते प्रीति श्याम स्याम सौ किन्ही ता दिन ते मेरे इन नैननि नैकहूँ नींद न लीन्ह#
कृष्ण काव्य धारा में कवियों द्वारा प्रकृति का भी बहुत खूबसूरत वर्णन किया गया है कवियों द्वारा आलम्बनगत व उद्दीपन गत दोनों रूपों का वर्णन है कही कही प्रकृति को दुति रूप व उपदेशक रूप में प्रस्तुत किया गया है कृष्ण धारा के कवियों ने ब्रजमंडल के प्राकृतिक सौंदर्य को काव्य में स्थान देते हुए गोकुल गोवर्धन यमुना तट का वर्णन किया है श्रृंगार रस के संयोग पक्ष में कवियों द्वारा प्रकृति वर्णन आलम्बन गत है एयर उद्दीपन गत भी जो वियोग पक्ष में मिलता है।
सुर दास जी कहते है-
#बिनु गोपाल बैरिनि भई कुंजै तब यह लता लगती अति शीतल अब भई विषम ज्वाल की पूंजै #
सभी ने श्री कृष्ण को अवतार माना है एव कृष्ण को सर्वगुण सम्पन्न सर्वशक्तिमान एव सर्वदाता माना है जिसके अनुसार सृष्टि कि से लेकर पालन सभी श्री कृष्ण द्वारा संचालित होता है कृष्ण सर्वज्ञ सर्वव्यापक है श्रीमद्भागवत पुराण श्री कृष्ण भक्ति का मूल स्रोत है कही कही कवियों ने भगवान श्री कृष्ण को मानव स्वरूप माना है मानव रूप में कृष्ण नंद यशोदा के पुत्र ग्वाल बालो के सखा तथा गोपियों के गोपियों के प्रेमी है बहुत से कवियों ने श्री कृष्ण के इसी रूप का वर्णन किया है कही कही कवियों ने कृष्ण को ब्रह्म मानकर उनका विराट रूप प्रस्तुत करते है और उन्हें तीनो लोको का स्वामी घोषित करते है।
लीला वर्णन-
सभी कृष्ण कवियों ने कृष्ण कि लीलाओं का सुंदर वर्णन किया है ब्रज मण्डल कृष्ण कि लीला भूमि रही है वही उन्होंने बिभन्न प्रकार कि लीलाओं कि है सूरदास जी ने बाल लीलाओं का अत्यंत सजीव चित्रण किया है कृष्ण रूप में सौंदर्य एव शारीरिक चेष्टाओं व लीलाओं का सरस मनोरम स्वाभविक वर्णन किया है ।राधा कृष्ण एव गोपी कृष्ण कि जिन लीलाओं का वर्णन कृष्ण भक्त कवियों ने किया है वह मुख्यतः पुराणों पर आधारित है सभी कवियों ने कृष्ण कि बाल लीला और रास लीला का चित्रण किया है।
मौलिकता-
कृष्ण काव्य का उपजीव्य ग्रंथ भागवत पुराण है वल्लभाचार्य ने अपने शिष्यों को निर्दर्शित किया कि भगवत के दशम स्कंध को आधार मानकर भगवान श्री कृष्ण कि लीलाओं का वर्णन करे परन्तु यह भी सत्य है की कृष्ण कवियों ने भागवत पुराण को भले ही आधार बनाया हो फिर भी मौलिकता सर्वत्र देखी जा सकती है भागवत पुराण में श्री कृष्ण निर्लिप्त है और गोपियों कि प्रार्थना पर लीलाओं में प्रतिभाग करते है लेकिन कृष्ण काव्य में कृष्ण स्वंय गोपियों कि तरफ आकृष्ट होते है।भागवत पुराण में सगुण पर निर्गुण कि विजय का वर्णन है ।भागवत पुराण में श्री कृष्ण को ब्रह्म के रूप में चित्रित किया गया है जबकि कृष्ण काव्यों में श्री कृष्ण को सामान्य मानव के रूप में वर्णित किया गया है जिसके कारण कृष्ण काव्य में सर्वत्र मौलिकता का दर्शन होता है।
भक्ति-
कृष्ण काव्य कि प्रमुखता उसकी भक्ति भावना है कृष्ण कवियों द्वारा यह भक्ति अनेक रूपों में अभिव्यक्त किया गया है जो नवधा भक्ति पर आधारित है।
फिर भी मुख्यतः इनकी भक्ति में वात्सल्य संख्य एव दाम्पत्य भाव है ।
गोपियां कृष्ण से प्रेम करती है जिसके लिए समाज परिवार की मर्यादाओं का परित्याग कर दिया उनकी भक्ति दाम्पत्य श्रेणी में आती है।
मीरा बाई ने भी दाम्पत्य भाव भक्ति कि है ।कृष्ण सुदामा प्रसंग कृष्ण ग्वालों के प्रसंग संख्य भक्ति के अंतर्गत आते है।
श्री कृष्ण कि बाल लीलाओं का वर्णन किया जाता है जो वात्सल्य भाव जागृत होता है सभी कृष्ण कवियों ने बाल लीलाओं का वर्णन किया है जो वात्सल्य भाव जागृत होता है सभी कृष्ण काव्य के कवियों से अलग सुर दास जी बाल लीलाओं का जैसा वर्णन किया है वैसा किसी ने नही किया है इसीलिये उंसे वात्सल्य सम्राट कहते है।कही कही दास्य भक्ति भी मिलती है सुर दास जी ने कहा है-
# प्रभु हौं सब पतितन को टिको और पतित सब दिवस चारी के हौ तो जनमत ही को#
माधुर्य भक्ति श्रृंगार रस का वर्णन है।
#जब तै प्रीति श्याम स्याम सौं किन्ही ता दिन ते मेरे इन नैननि नैकहू नीद न लीन्ही#
प्रकृति वर्णन-
कृष्ण काव्य के कवियों ने प्रकृति का वर्णन भी बाखूबी किया है आवलम्बन व उद्दीपनगत दोनों रूपों का वर्णन किया है ।प्रकृति को कही कही दूती रूप एव उपदेशक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।कृष्ण कवियों ने बृज मण्डल के प्राकृतिक सौंदर्य को काब्य में महत्वपूर्ण स्थान दिया है गोकुल गोवर्धन यमुनातट का बहुत सुंदर चित्रण किया है।
श्रृंगार रस के संयोग पक्ष में इन कवियों ने जो प्रकृति वर्णन किया है वह आलम्बनगत भी है और उद्दीपनगत भी हैं वियोग पक्ष में प्रकृति के उद्दीपनगत वर्णन किया है।
भक्ति रस-
कृष्ण काव्य में एक ही प्रमुख धारा प्रवाहित है वह है भक्ति रस भक्ति रस कृष्ण कवियों के काव्य में ही परिलक्षित होता है वैसे बहुत से विद्वान भक्ति को कोई रस मानते ही नही श्रृंगार वात्सल्य एव शांत रस का समन्वय है यह काव्य वीर रस भयानक अद्भुत आदि रसों का समावेश कृष्ण काव्य में यदा कदा ही दृष्टव्य है ।सूर दास वात्सल्य सम्राट है नंददास ,मीरा बाई, रसखान आदि ने श्रृंगार रस के दोनों रूपों का समन्वयक उत्कृष्ट प्रस्तुत किया है।मीराबाई की विरह वेदना श्रृंगार हिंदी साहित्य का बेजोड़ अध्याय आयाम है।
रीति तत्व-
कृष्ण काव्य धारा में कुछ कवियों में रीति तत्व का समावेश है जिसमे सुरदास ,नंद दास सबसे ऊपर है दोनों ने अपने काव्य में नायक नायिका के भेद को प्रस्तुत किया है सूरदास जी कि साहित्य लहरी नायक नायिका भेद का वर्णन है ।
नंद दास कि रूप मंजरी रसमंजरी रचनाओं में नायक नायिका भेद का वर्णन है।
नंद दास जी ने अपनी रचनाओ में नायिकाओं के नौ भेद एव नायकों के चार भेद बताये है।
कला पक्ष-
लगभग सभी कृष्ण कवियों ने साहित्यिक ब्रजभाषा को ही अपने काव्य का आधार बनाया है ।
ब्रजभाषा के साथ ब्रजमंडल में प्रचलित मुहावरे लोकोक्तियों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है ।अलंकारों कि दृष्टि कोण से इन कवियों ने शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों प्रकार के अलंकारों का प्रयोग किया है अनुप्रस यमक श्लेष रूपक उपमा मानवीकरण आदि कृष्ण काव्य कवियों के लिए उपयुक्त है ।चौपाई सवैया कवित्त गीतिका आदि छंद है सभी कृष्ण कवियों ने ध्यातव्य शैली को ही अपनाया है जिसके कारण रचनाओं में गीतात्मकता है संगीतात्मकता रागात्मकता आदि प्रवृतियों का समावेश स्प्ष्ट दिखता है साथ ही साथ बिभन्न राग रागनियों का उपयोग किया गया है।
निष्कर्ष- बहुत स्पष्ट है कि कृष्ण काव्य परम्परा द्वारा हिंदी साहित्य महिमा मंडित एव सबृद्ध हुआ है भक्ति काल हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल है तो उसमें कृष्ण काव्य परम्परा का अति महत्वपूर्ण योगदान है।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।