कृष्ण अर्जुन संवाद
है पार्थ सज्ज संग्राम दिखा,
गाण्डीव में धरकर बाण दिखा।
तू दिखा शौर्य रणभूमि में,
पौरुष का सोया मान दिखा।।
कर स्वच्छ धर्म की राहों को,
ना लज्जित कर उन माओ को।
जिनका विश्वास अडिग तुझपे,
ना छोड़ धर्म की राहो को।।
पथ सरल नहीं भय त्याग अभी,
गाण्डीव को इनपर साध अभी।
जयकार भवानी की लेकर,
हे सोये भारत जग अभी।
ना लड़े तिमिर उज्ज्वल होगा,
पापी में फिर से बल होगा।
स्वीकार किया विपदाओं,
फिर धर्म सदा निर्बल होगा।।
ना करुणा को स्वीकार किया,
पांडव तुम पर धिक्कार किया।
न क्षमा योग्य ये कौरव है,
हर बार पीठ पर वार किया।।
ये धर्म धरा संग्राम पार्थ,
है पांचाली सम्मान पार्थ।
न भय कर इन लाचारों से,
तू यदुकुल का दिनमान पार्थ।।
है विचलित मन तो दूर करो, तू जान बहुत परतापी है,
इस कुरुवंश की सेना पर, तू पार्थ अकेला काफी हैं।
परिभाषित कर पुरुषार्थ पार्थ,
सारी वसुधा को ज्ञात पार्थ।
तू है अलौकिक विश्व मे,
हे जाग पार्थ हे जाग पार्थ।।
सुन सिंह गर्जना केशव की, अर्जुन का पौरुष जाग गया,
गाण्डीव हाथ मे ऐसे रख, डर मानो मन से भाग गया।
जय मात भवानी महादेव, रण गूँज उठा जयकारों से,
जो संग खेलकर बड़े हुए, अब खेल रहे तलवारों से।।
जल उठा समर का महा ज्वाल,
चल रहा शिश पर महाकाल।
यू मुण्ड सजाए धरती पर,
नियति ने कैसा रचा जाल।
क्या साहस था जो रुक पाते,
अर्जुन के सम्मुख टिक पाते,
जो लड़ा पार्थ सब दंग हुए
भय कारण मस्तक झुक जाते।
लहू बह बह कर श्रृंगार हुआ,
बाणों का मिलकर वार हुआ।
कुरुक्षेत्र रणभूमि में,
देखो क्या हाहाकार हुआ।
अब रक्त धरा का चन्दन था,
नभ में बाणों का कम्पन था।
कट रहे मुण्ड तलवारों से,
नित नित मृत्यु का वंदन था।।
जो सर्वकला का ज्ञानी है,
कालो का अंतर्यामी है।
उसको क्या दुश्मन मार सके,
जब संग विश्व का स्वामी हैं।।
रवि यादव, कवि
कोटा, राजस्थान
9571796024