” कू कू “
” कू कू ”
सड़क किनारे की बात
अनायास ही मिला था
कू कू रखा उसका नाम
मुर्गे का छोट्टा चूजा था,
उठाया गोद में रोमी ने
थोड़ा सा फड़फड़ाया था
कार गन्दा ना करे इसलिए
अख़बार भी बिछाया था,
उड़ता पंछी गगन का वो
पैरों को धागे से बांधा था
सोचा भूख तो लगी होगी
ढाबे से चावल खरीदा था,
बार बार में बीट कर देता
परेशान तो थोड़ा किया था
गत्ते से उसका घर बनाया
ख़ुशी से उसमें घुस गया था,
अनाज के दाने लगते प्यारे
बीच बीच में पानी पीता था
दिन में बालकनी में खेलता
शाम को अंदर भागता था,
थोड़ी सी उछल कूद करता
टॉवल पर फिर सो जाता था
दरवाजा खुले तो मौका देखे
बाहर तेज से भाग जाता था,
कभी धूप कभी छांव भाती
गेट पर ही दम तोड़ दिया था
घर आए तो सांस थमी मिली
पूनिया को उसने रुला दिया था।