कुहुक कुहुक
कुहुक कुहुक बोले
बगिया में कोयलिया
खनक खनक
कॅंगना अंँगना में!
विरहिन की गति कौन कहे कवि
मीन सी तड़पति नीर नयन ले
चीर हरन मन का छिन छिन हो
पीर उठे हिय के कन कन से
टप टप सूख के गिरे रे खजुरिया
खनक खनक
कंँगना अंँगना में!
भोर ते बाट मैं जोहूंँ पिया की
कौन खता मोरे राम बिसारे
चैन न पाऊंँ कि बैरी नजरिया
फरकि फरकि लै आवै दुआरे
छन छन गिरे अमिया की बौरिया
खनक खनक
कंँगना अंँगना में!
-आकाश अगम