कुल के दीपक
बस दूर तलक जाना है
विस्मृत मंजिल की ओर
जो बनी ही नहीं शायद
कभी किसी एक लिए
बस जाना है
किस ओर किस दिग
पता नही कहां
ढेरों आशाओं का बोझा लिए
बस जाना है
ओ मेरे कुल के दीपक
अस्तित्व तेरा इसी में है
बस जलते चले जाना है
तुझे बस चलते चले जाना है।।