कुमार ललिता छंद (वार्णिक) 121 112 2 7
कुमार ललिता छंद (वार्णिक)
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7 वर्ण प्रति चरण
‘प्रभात गान’
खिली कुसुम क्यारी,
लिली बहुत प्यारी।
जगी हर दिशा है,
भगी अब निशा है।
छटा मन लुभाये,
धरा गुनगुनाये।
सरोवर सुहाने,
लगे गुनगुनाने।
जगी जब कलाएँ,
नई कह कथाएँ।
हमें तब जगाएँ,
हटी मन व्यथाएँ।
दिनेश नभ छाये,
हवा पट उड़ाये।
बजी मधुर वंशी,
उड़े गगन पंछी।
-Gn