कुनबा
देव दानव यक्ष नर नारी सब ने उसकी ओर देखकर मुंह फेर लिया । कचरे के ढ़ेर पर बिलखता शिशु अपने चीत्कार से तीनों लोक गुंजायमान कर रहा था । सड़क से गुजरते आवारा पशु भी उसकी चीत्कार से दूर दूर भाग रहे थे ।
देवलोक के सभी नागरिक आकाश में पंक्तिबद्ध होकर खड़े थे कि देखें विधाता ने इसके भाग्य में क्या लिखा है । सड़क से गुजरती कितनी ही स्त्रीयां जो स्वयं ममता का अनुपम उदाहरण थीं , वे भी मुंह फेर कर गुजर जा रही थी । कोई कोई तो उस स्त्री को कोस रहा था जो इस शिशु की माता थी कुछ लोग पुरूष को दोष दे रहे थे जिसकी ये वंश बेल थी ।
सूर्य भी मानों लज्जित होकर सबेरे ही अपनी दुकान बढ़ा चले थे । चंद्रमा भी बादलों की ओट में मुंह छुपाए निकलने में शर्म अनुभव कर रहा था ।
माताओं ने द्रवित होकर घर के किवाड़ बंद कर लिए थे, लेकिन शिशु का रूदन उनके कानों से रूधिर प्रवाह को उद्दत कर रहा था ।
तभी ढोलक की थाप पर थिरकते एक दूसरे से ठिठोली करतेे वे गली के मोड़ पर अवतरित हुए ।
देव आश्चर्य में पड़ गए अरे ये कहाँ से आ गये जब देव दानव यक्ष नर नारी और पशु आदि भी मिलकर इस शिशु का रूदन बंद न करवा सके तो क्या विधाता ने इस शिशु का उद्धार इनके हाथों लिखा था ।
सभी देवगण विधाता की स्तुति में हाथ जोड़कर खड़े हो गए इधर मंडली ने उत्सव बंद कर कोलाहल शुरू कर दिया था । एक अधेड़ जो हाव भाव से उनका नेतृत्वकर्ता लग रहा था उसने आगे बढ़कर शिशु को गोद में उठा लिया , परम आश्चर्य शिशु का रूदन बंद हो गया ।
अधेड़ ने सर उठाकर पहले देवताओं का धन्यवाद किया और फिर उस माता को सहस्त्रों आशीष दिए जिसने उनका कुनबा बढ़ाया था ।
देवलोक ने नागरिक सर झुकाए खड़े थे जिसशिशु का उद्धार समस्त देवलोक के नागरिक न कर सके उसका उद्धार किन्नरों ने किया । रूदन बंद होने के पश्चात नर नारियों ने खिड़कियां किवाड़ खोलकर झांकना शुरू कर दिया ।