‘ कुदरत की चेतावनी ‘
ये बरखा बहार है
देती करार है
सूखी धरती पर
लोगों की आस पर
आशीर्वाद की फुहार है ,
इसका इंतज़ार है
दिल बेकरार है
तकती आँखों को
रूकती साँसों को
सूरज से तकरार है ,
कर्जे का बोझ है
पानी की खोज है
उम्मीद को जगाये
बीजों को भिगाये
हिम्मत और ओज है ,
शीश नमन है
मौसम का दमन है
अब तो बरसाओ
नही और तरसाओ
हमारा ये चमन है ,
गलती हमारी है
हाथ में आरी है
काटेगें पेड़ो को
खोदेगें जड़ों को
सबके भुगतने की बारी है ,
हुआ ये कहर है
करनी नई सहर है
परिस्थितियों से दहल जाओ
देखो तुम संभल जाओ
नही तो ज़हर है ।
स्वरचित , मौलिक एवं अप्रसारित
( ममता सिंह देवा , 30/05/2021 )