कुछ लिखा हैं तुम्हारे लिए, तुम सुन पाओगी क्या
कुछ लिखा हैं तुम्हारे लिए, तुम सुन पाओगी क्या
जिसे छोड़ा है तुमने, वो काश्तकार ढूंढ पाओगी क्या
किस आज़ादी की दुहाई दे रही हो तुम
वो आज़ादी आलोक के सिवा कही और पाओगी क्या
497 की बात तुमसे कोई क्यों करें, आज़ादी हैं अब तो
क्या इस हाल में भारत को अमेरिका बना पाओगी क्या
जिस दूसरे को तुम आज अपना बेहतर समझ रही हो
कोई और बेहतर मिला तो तीसरे विकल्प पर जाओगी क्या
एथिक्स बहुत पढ़ी होगी तुमने स्वार्थ सिद्धि के लिए
जिंदगी के नैतिक मूल्यों को बचा पाओगी क्या
जिसने सब कुछ लूटा दिया सिर्फ़ तुम्हारे लिए
उसके साथ भी कभी न्याय कर पाओगी क्या
तुम भोली हो, पागल हो या अंधी हो ऊपरवाले जाने
अपने आशिक के अवैध संबंधों को गिन पाओगी क्या
हर शाम उसका रंगीन हो, ख्वाब पाले बैठा है जो
उसमें भी मोहब्बत कभी ढूंढ पाओगी क्या
कैसे कह दे कि तुम्हें भारतीयता का ज्ञान नहीं है
इन महंगे लिबास में वो पुराना इज्जत पाओगी क्या
जो घूँघट कभी ना गिरे तुम्हारे सर से
अपनो के बीच वो सम्मान दुबारा बना पाओगी क्या
तुम जाने किस किस अहम में जी रही हो
सब कुछ छोड़कर जाना है इस जमाने से
ये जिस्म और कथित रुतवा जब ढल जाएगा
दुबारा पाने की औकात रख पाओगी क्या
तुम सिर्फ़ अपनी जिद्द पूरी करने को ठानी हो
कभी अपने बच्चों के साथ न्याय कर पाओगी क्या
जिनका भरा पूरा, हँसता खेलता परिवार था
उन बच्चों के सागा बाप कभी दिला पाओगी क्या
तुमने रिश्ता ही नहीं, एक संस्कृति को तोड़ा है
फिर से उस परंपरा को कभी जोड़ पाओगी क्या
तुम्हारा कुछ था ही नहीं फिर तुमने क्या खोया
उस पुरूष का परिवार दुबारा लौटा पाओगी क्या