■ आज का शेर
“कुछ लाशें थीं
कल दफ़ना दीं।
कुछ आंसू थे
ख़ुद सूख गए।।”
#ये_भी_होना_ही_था
कभी डॉ. बशीर “बद्र” साहब ने फ़रमाया था-
“तर्के-तआल्लुक़ात को एक लम्हा चाहिए।
लेकिन तमाम उम्र मुझे सोचना पड़ा।।”
बावजूद इसके सब्र का एक बांध होता है, जो ढह ही जाता है। एक न एक दिन।।
【प्रणय प्रभात】