कुछ मन की कर जाऊँ
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आज मैं कुछ मन की कर जाऊँ।
बिना पंख गगन में उड़ जाऊँ।
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चाँद सितारे तोड़ के लाऊँ।
अपने बगिया में मैं लगाऊँ।
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प्रकृति से मैं रंग चुरा लूँ।
अपने सुने मन को रंग जाऊँ।
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फूलों की खुश्बू बन जाऊँ।
सब के मन को मैं महकाऊँ।
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बादल के संग नाचूँ – गाऊँ।
कभी पतंगा,कभी चिड़िया बन जाऊँ।
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सपनों की दुनिया मैं सजाऊँ।
परीलोक में धूम मचाऊँ।
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सात सुरों की संगीत बजाऊँ।
जीवन के हर तार सजाऊँ।
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आशा-निराशा की भूलभुलैया से
दूर कहीं एक नई दुनिया बसाऊँ।
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जब तक हूँ मैं खुद भी जीऊँ।
औरों को भी मैं जीना सीखा दूँ।
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स्वर्ग यही है नर्क यही है,
सबको मैं इतना समझाऊँ।
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आज मैं कुछ मन की कर जाऊँ।
बिना पंख गगन में उड़ जाऊँ।
????-लक्ष्मी सिंह ??