कुछ मज़ा ही नही,अब जिंदगी जीने मैं,
कुछ मज़ा ही नही,अब जिंदगी जीने मैं,
धड़कने भी मना करने लगी,रहने सीने में,//
तिश्नगी मिटी ही नहीं कभी मेरे लवों से,
दर्द का दरिया भी सूखने लगा इतना पीने में //
कितना और टूटना वाकी है,बता दे ए खुदा,
अब और सहेज़ न सकुंगी खुदको मैं करीने में //
पतवार भी “रत्न” ने हाथों मैं थामकर देखीं,
फिर भी बेठिकाना ही रही,अपने ही सफीने में //
इंतज़ार तो ख़तम हुआ ही नही कभी,
दिन भी बदल गए साल और महीने में //
तिश्नगी -प्यास
सहेजना – तह करके अछे से ,
करीने – तरिके से
सफीना-जहाज या कश्ती ,