कुछ भी होगा ये प्यार नहीं है
कुछ भी होगा ये प्यार नहीं है
साथ मिलना मिलाना हो, समझना समझाना होगा।
हमेशा आस-पास रहना हो, हरदम ख्याल रखना हो।
परवा करना या करवाना, एक दूसरे पर अधिकार जताना।
यह सब कुछ तो होगा ही, लेकिन वह प्यार तो नहीं होगा।
आधुनिकता की होड़ में, हमसे क्या कुछ नहीं बदला गया।
रिश्तें -नाते, धर्म, समाज, बाबुल का घर भी छोड़ा गया.
पश्चिमी सभ्यता की आड़ में, हमारी संस्कृति से तोड़ा गया।
माँग सिंदूर मलंगसूत्र बिन शादी के, प्यार हम से जोड़ा गया।
सुंदरता की प्रतिस्पर्धा में, कपड़ो की अश्लीलता बताई जाती हैं।
यौवन की नग्नता से, जंगली भेड़ियों की लार टपकाई जाती हैं।
तब इन भेड़ियो को, अपनी बहन, बहु, बेटियाँ दिखाई देती है।
मरे को भेड़िया मुह नहीं लगता है, हेवान टुकड़ों में काट देता है।
धर्म -मजहब की आड़ में हैवान इंसानियत को जुगालते है।
दिन महिना कुछ सालों में, ये पिशाच कैसा यौवन पाते हैं।
जिन्दा की आबरू लूटते, मरने पर 30-40 टुकड़े काटे जाते हैं।
पकड़े जाने पर सहयोगी, यह मोहब्बत का मतलब समझाते हैं।
इन दरिंदों का तो, किसी धर्म मजहब से नहीं कोई नाता ह।
इंसानियत के दुश्मनों को, कानून सजा भी कहां दे पाता है।
सालों बाद में मिले फांसी तो, यह इस गुनहा की ये सजा नहीं है।
अब आपको ना भटकना है, इन दरिंदों को तुरंत ही लटकना है..
अनिल चोबिसा स्वरचित रचना चित्तौड़गढ़ (राज.) 9829246588