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4 Apr 2020 · 1 min read

कुछ नही

में छुपाता किसी से कुछ नही
बस में बताता किसी को कुछ नही

में कर देता हु उसके काम सारे
बस जताता किसी को कुछ नही

वो देता है जमाने के दर्द मुझे
में दिखाता किसी को कुछ नही

वो सोचता है मुझे कुछ पता ही नही
पता सब है
बस में बताता किसी को कुछ नही

खुद को रश्क़-ए-क़मर? समझती है वो

मे भी आफताब? हु
बस में जलाता किसी का कुछ नही
???????

रश्क़-ए-क़मर=जिसकी सुंदरता देख के चाँद भी जले

आफताब=सूरज की तरह प्रकाश रखने वाला

1 Like · 247 Views
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