कुछ कहमुकरियाँ….
१-
जपूँ अहर्निश उसका नाम।
बनाए वो बिगड़े सब काम।
वही मुक्ति वही चारों धाम।
क्या सखि साजन ? ना सखि राम।
२-
आगे पीछे मेरे डोले।
कान में कोई मंतर बोले।
समझ न आए एक भी अच्छर।
क्या सखि साजन ? ना सखि मच्छर।
३-
जहाँ भी जाऊँ संग ले जाऊँ।
उस बिन पलभर रह न पाऊँ।
भाए उसका हर स्टाइल।
क्या सखि साजन ? ना मोबाइल।
४-
दुनिया भर की खबरें लाए।
एक वही तो मन बहलाए।
उस बिन कैसे करूँ मैं चैट ?
क्या सखि साजन ? ना सखि नैट!
५-
भरके मुझे आगोश में अपने।
दिखाए मधुर-मधुर वो सपने।
गुपचुप-गुपचुप करे फिर बात।
क्या सखि साजन ? ना सखि रात।
६-
दिन भर जाने कहाँ वो जाता।
साँझ ढले तब वापस आता।
दरस को उसके दिल बेताब।
क्या सखि साजन ? ना मेहताब।
७-
रातभर कहीं नजर न आए।
दिन में दूर खड़ा इठलाए।
समझे खुद को बड़ा नवाब।
क्या सखि साजन ? ना आफताब।
८-
पलता है नयनों में मेरे।
छलता है पर मन को मेरे।
अद्भुत, अनूठा और नायाब।
क्या सखि साजन ? ना सखि ख्वाब।
९-
सही-गलत क्या, वही सिखाए।
मंजिल तक मुझको पहुँचाए।
उस बिन रहे अधूरी नॉलेज।
क्या सखि साजन ? ना सखि कॉलेज।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )