कुछ अलग शब्दों में …सागर सा प्रेम
प्रेम दुनिया की सबसे बड़ी वस्तु है, न जाने कौन सा पल,प्रेम की सौगात बन जाए।
मैं तुम्हारे बारे में कुछ अलग शब्दों मै लिखना चाहती हूं,तीमहरे अकेले के लिए ईजाद करना चाहती हूं एक भाषा।
जिसमें समा सके तुम्हारी देह और जिससे
मापा जा सके मेरा प्यार।
मैं तुम्हारी समुद्र हूं,मुझ से मत पूछो
जीवन की आगामी यात्राओं की समय
सारणी के बारे मै। तुम्हें वही करना है जो
है तुम्हारी फितरत,भूल जाओ दुनियावी आदतों को ,और दिल से पालन करो
सामुद्रिक नियमावली का,मेरे भीतर धंस जाओ,एक पागल मछली की तरह
मैं छोड़ देना चाहती हूं होंठों को
थक गई हूं अपने मुख से,कोई अलग सी चीज़ चाहती हूं ,जिससे निकलें शब्द ठीक वैसे ही,जैसे समुद्र से निकलती हैं जल परियां,जैसे जादूगर के हैट से उछल कर निकलते है सफ़ेद चूजे।
मेरे जीवन से जुड़ी अब तक की सब चीजें ले जाओ,लेकिन मुझे सिखा दो समुद्र वो,एक नया शब्द जिसे मैं अपने प्रियतम
के कानों में पहना सकू इयरिंग्स की तरह।
मुझे चाहिए नई अंगुलियां, जिनसे मैं लिख सकूं कुछ दूसरी तरह प्रेम परिभाषा।
लिखूं इतना ऊंचा जैसे होते है जहाजों के मस्तूल, लिखूं इतना ऊंचा जैसे होते है जिराफ़ की जीभ,ओर मैं अपने प्रीतम के लिए सिल सकूं,प्रेम भरी कविता की एक पोशाक।प्रेम मैं तुम्हे एक अनोखे पुस्तकालय में बदलना चाहती हूं,
जिसमें मेरे दिल को चाहिए,
बारिश की लय, सितारों की धूल,
स्लेटी बादलों की उदासी,
और शरद ऋतु के चक्के तले पिसती
दिलों की गिरती हुई पत्तियों का संताप।
जीवन और मृत्यु की भांति,
तुम्हारा” प्रेम ,” अपुनरावृत।❤️???
आशा शर्मा,मुंबई , महाराष्ट्र