कुंडलिया
कुंडलिया छंद
‘श्रम ही जीवन है ‘
मजदूरी का फांवड़ा ,साहस लेकर साथ।
आत्मतोष श्रम से उठा, लीना लक्कड़ हाथ।।
लीना लक्कड़ हाथ लक्ष्य ले आगे बढ़ती।
कभी न मानी हार, श्रमिक पथ अविरल चलती।।
सुन ‘रजनी’ बतलाय कर्म इसकी मजबूरी।
छिपा नहीं लघु गात करे दिनभर मजदूरी।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’