किस्सा है
अधूरी जिन्दगी है यहाँ,
हर दिन अधूरी इच्छा है,
अधूरी नींद है आंखों में,
यही रोज किस्सा है…
तमाम बातें हैं यहाँ जो,
बस आधे मे रह गयीं,
हर आधा कहीं और,
किसी आधे का हिस्सा है…
ना चल ही पा रहे हैं,
ना दौड़ने के काबिल हैं,
रेंगते कट रही उसमें,
जितना भी मिला रस्ता है…
आधी पास हैं मेरे,
बची ख्वाहिशें कहाँ खोजें,
ख्यालों की चुनाई से,
पूरा करते ये गुलिस्ताँ हैं…
©विवेक ‘वारिद’ *