किस्सा–चंद्रहास अनुक्रम–12
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–चंद्रहास
अनुक्रम–12
वार्ता–चंद्रहास कुंतलपुर पहुँच जाता है,वहाँ उसको एक बाग दिखाई देता है,वह सोचता है चलो विश्राम कर लेता हूँ,यह बाग दिवान की लड़की विषया का था जो हर रोज सैर करने आती थी।
बाग की शोभा देखते ही बनती थी, चंद्रहास बाग की सभी चीजों को निहारता है । कवि ने बाग की खूबसूरती का सुंदर वर्णन किया है…
टेक–गुलिस्तान की छवि कहैं क्या ऐसा आलीशान बण्या,
सुरपति का आराम कहैं या मनसिज का अस्थान बण्या।
१-दाड़िम दाख छुहारे न्यारे,पिस्ते और बादाम लगे,
मोगरा केवड़ा हिना चमेली,खुशबूदार तमाम लगे,
अखरोट श्रीफल चिलगोजे,कदली अंगूर मुलाम लगे,
नींबू नारंगी चंगी,अमरूद सन्तरे आम लगे,
जूही बेला पुष्प गुलाब खिल्या एक आत्म परम स्थान बण्या।
२-मौलसरी चंपा लजवंती,लहर लहर लहराई थी,
केतकी सूरजमुखी गेंदे की,महक चमन मै छाई थी,
स्फटिक मणी दीवारों पै,संगमरमर की खाई थी,
गुलिस्तान कि शोभा लख,बसंत ऋतु शरमाई थी,
बाग कहुं या स्वर्ग इस चिंता मै कफगान बण्या।
३-मलयागर चंदन के बिरवे,केसर कि क्यारी देखी,
बाग बहोत से देखे थे,पर या शोभा न्यारी देखी,
जिधर नजर जा वहीं अटक ज्या,सब वस्तु प्यारी देखी,
सितम करे कारीगर नै,अद्भुत होशियारी देखी,
अमृत सम जल स्वादिष्ट एक तला चमन दरम्यान बण्या।
४-झाड़ फानुस गिलास लगे,विद्युत की बत्ती चसती थी,
नीलकंठ कलकंठ मधुर सुर,प्रिय वाणी दसती थी,
मुकुर बीच तस्वीर खींची,तिरछी चितवन मन हंसती थी,
अष्ट सिद्धी नव निधि जाणु तो,गुलिस्तान मै बसती थी,
हीरे मोती लाल लगे एक देखण योग्य मकान बण्या।
५-शीशे की अलमारी भेद बिन,चाबी लगै ना ताळे मै,
कंघा सीसा शीशी इत्र की,पान दान धरे आळे मै,
चमकैं धरे गिलास काँच के,जैसे बर्फ हिमाळय मै,
एक जबरा पेड़ खड़्या था बड़ का,झूल घली थी डाळे मै,
परी अर्श से आती होगी इस तरीयां का मिजान बण्या।
६-चातक चकवा चकोर बुलबुल,मैना मोर मराल रहैं,
सेढू लक्ष्मण शंकरदास के,परम गुरु गोपाल रहैं,
केशोराम सैल करते,खिदमत मैं कुंदनलाल रहैं,
कर नंदलाल प्रेम से सेवा,तुम पै गुरु दयाल रहैं,
मन मतंग को वश मै कर ईश्वर का नाम ऐलान बण्या।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)