किस्मत रुपयों की
किस्मत रुपयों की
करते हो जिसकी पूजा,
लक्ष्मी धन के देव रूप में।
कहां कहां से गुजरता है वह,
ठंडी बारिश और धूप में।।
चलता रहता है वह हरदम,
एक हाथ से दूजे हाथ वो।
नहीं पता है धर्म जाति,
ना ही देखे जात पात वो।।
कहीं तो मांस मदिरा पर जाए,
उसी हाथ से थूक लगाएं।
कभी चढ़ती है दक्षिणा,
भगवान की दहलीज पर आए।।
कभी उड़ाये नचनियो पर,
कहीं उसी से कीमत लगाएं।
तब क्यों तुम्हें लाज ना आती,
छुआछूत की बात ना आती।।
झूठा रुपया अच्छा लगता है,
घर ला लाकर तू गिनता है।
कहे पा”रस” इतना पाप क्यों करते, ऊपर वाले से क्यों नहीं डरते ।।