किस्मत की लकीरें
किस्मत की लकीरें खींच जाती हैं जब,
हाथों और ललाट पर,
फिर मुसीबतों का सिलसिला शुरु हो जाता है,
कोई दिखाता अपना हाथ,
तो कोई दिखाता अपनी टेवा।
फिर चलन शुरु होता है पोंगापंथियों का,
किसी को बताई जाती है शनि की महादशा,
तो किसी को राहु- केतु का दोष।
ऐसे में इंसान बंद कर देता है, सन्मार्ग के सत्कर्म,
तिलक लगाना और माला जपना कर देता है शुरू।
पर उस अबोध को क्या मालूम??
इस ग्रहण से तो चांद-सूरज भी न बच पाए,
कर्मों का हिसाब तो छत्रपति हरिश्चंद्र और,
महाराज दशरथ को भी पुत्रवियोग के रूप में,
चुकता करना पड़ा था।
इस लिए हे मानव ,
तू अपनी औकात को मत भूल।
सत्कर्म करता चल,
तभी तेरे कर्म सुधरंगे,
और तेरे कर्म ही तेरी क़िस्मत को सुधारेंगे।
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डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।