किसी घोर चुप्पी के प्रहर में हम – तुम मर जाएंगे
किसी घोर चुप्पी के प्रहर में
हम – तुम
और तमाम हमसे जुड़े लोग
मर जाएंगे …
एक अफ़सोस के साथ …
कि हमें बोलना था
भूख के ख़िलाफ़
हमें बोलना था अपनी बेकारी पर
हमें बोलना था चमगादड़ हुए
लोग दरबारी पर
हमें बोलना था सच के लिए
हमें बोलना था
प्रकृति के निस्तेज होते रंगों पर
हमें बोलना था अपने मुर्दगी पर
हमें बोलना था
क्रांति और भ्रांति के बीच
फैलाए जा रहे रेशमी जाल के विरुद्ध
और सबसे जरूरी …
हमें बोलना था
अपने ही अंदर डरे – दुबके प्यार के लिए
हमें जरूर बोलना था
मगर हमने चुना चुप रह जाना
जिंदगी के तमाम उन प्रश्नों पर
जहां अनिवार्य था बोलना …
और हम चुप – चाप
इस चुप के अफ़सोस में मर जाएंगे
~ सिद्धार्थ