किसी को ख़्याल में अक्सर तलाश करता है
किसी को ख़्याल में अक्सर तलाश करता है
कभी वो ख़्वाब का मन्ज़र तलाश करता है
उसे तलाश है हीरे की पत्थरों में सदा
बड़े हिसाब से पत्थर तलाश करता है
जहाँ मिले भी निवाला सुकूँ मयस्सर हो
नई ज़मीन गदागर तलाश करता है
तमाम रात तो गुज़री सफ़र में अब है सहर
थका हुआ है वो बिस्तर तलाश करता है
कोई ज़मीं कोई दौलत कोई ख़ुदा ढूँढे
कोई जहान में रहबर तलाश करता है
पता किसी को न ‘आनन्द’ है ज़माने में
सदा वो रात में ख़ावर तलाश करता है
शब्दार्थ:- गदागर = ग़रीब, ख़ावर = सूरज /आफ़ताब
डॉ आनन्द किशोर