किसान हूं मैं
भोजन का एक-एक कण हूं मैं,
आपके मुख का ज़ायका हूं मैं,
लाचार हूं मैं, परेशान हूं मैं, गुमराह हूं मैं
हां,……. किसान हूं मैं।
बंजर भूमि पर हल चलाता हूं,
सुर्य की तपिश में देह जलाता हूं मैं,
ओस भरी सर्द हवा में,
अपने गंतव्य तक जाता हूं मैं
लाचार हूं मैं, परेशान हूं मैं, गुमराह हूं मैं
हां,……. किसान हूं मैं।
धरती सोना उगलती है,
पानी से नहीं, ख़ून-पसीने से सींचता हूं मैं,
वसुंधरा का लाल हूं मैं,
अर्थव्यवस्था की जान हूं मैं,
लाचार हूं मैं, परेशान हूं मैं, गुमराह हूं मैं
हां,……. किसान हूं मैं।
©Ankit kumar