किसान मेरे देश के।
हक की लड़ाई लड़ने चल पड़े हैं ।
किसान मेरे देश के।
आँधियों और तूफानों से लड़ रहे हैं।
किसान मेरे देश के।
हर जुल्मों सितम को झेलते बढ़ रहे हैं।
किसान मेरे देश के।
जय किसान का नारा बुलंद कर रहे हैं।
किसान मेरे देश के।
पूंजीपतियों और बिचौलियों से जूझ रहे हैं।
किसान मेरे देश के।
चाल, चरित्र और चेहरा सब पहचान रहे हैं
किसान मेरे देश के।
फासीवादी सत्ता को उखाड़ फेंकने चल पड़े हैं
किसान मेरे देश के।
किसान विरोधी बिल का विरोध महीनों से कर रहे हैं।
किसान मेरे देश के
आज आंदोलन कर रहे हैं सड़कों पर ।
किसान मेरे देश के।
संवाद करने के बदले वाटर कैनन झेल रहे हैं।
किसान मेरे देश के।
सड़कों पर लाठियां खा रहे हैं।
किसान मेरे देश के।
आंसू गैस के गोले दागे जा रहे हैं। खा रहे हैं।
किसान मेरे देश के।
क्रूरता और दमन के बावजूद संघर्ष कर रहे हैं।
किसान मेरे देश के।
सरकार से संवाद करने दिल्ली आ रहे हैं।
किसान मेरे देश के।
“मन की बात” करने वाले आवाजें कुचलने में लगे हैं।
आज आवाज बुलंद कर रहे हैं ।
किसान मेरे देश के।
●●●
सर्वाधिकार सुरक्षित
©®—रवि शंकर साह
रिखिया रोड बलसारा, देवघर
झारखंड (भारत)