किसान/कृषक
विषयःकिसान
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ऊबड़ खाबड़ धरती पर जो ,फूलों की खेती करते हैं।
जेठ दुपहरी माघ शीत में, खेतों में पानी भरते हैं।
फसल उगाते,राष्ट्र बनाते, कहते उन्हें अन्नदाता सब ।
कैसा है दुर्भाग्य मगर यह, कर्ज़ों से निशदिन मरते हैं।
सूखे का संताप झेलते,कभी बाढ को भी सहते हैं।
कितनी भी वे करें कमायी,बोझ तले नित ही रहते हैं।।
दुनिया के जीवन दाता पर,कर्जों से निश दिन मरते हैं।
कैसा है दुर्भाग्य मगर यह,लोग अन्नदाता कहते हैं।।
बंजर हो भूतल चाहे भी, नहीं कभी हिम्मत धरते हैं।
घनी दुपहरी घोर शीत में, खेतों में पैदल चलते हैं।
खेत किसानी उनका पेशा,पेशे को गर्वित करते हैं।
स्वांस स्वांस में खुद्दारी है,लोग अन्नदाता कहते हैं।
मेहनत कश इंसान यह है,इंसां की पहचान यही है।
मानव में मानव से ऊपर,ईश्वर का वरदान यही है।
सत्य प्रेम का नित्य पुजारी,सम्मुख लेकिन है लाचारी,
भाग्य सहज लिखता औरों के,किस्मत उसकी है बेचारी।।
?अटल मुरादाबादी?
नोएडा