किसान का पुत्र
किसान का पुत्र
सपाट‚सरल।
सीख न पाया
कभी कोई छल।
ग््राामीण परिवेश से
आया उठकर
छल करने को
जहाँ
है कुछ नहीं।
सुबह‚शाम
खेत–खलिहान
रोटी की दौड़
नहीं किन्तु होड़
मुठ्ठी–मुठ्ठी बाँट
देते हैं लोग
अन्न और अनाज।
सियार की चालाकी
गिद्व की दृष्टि
कौअेव का कमीनापन
साँप की फितरत
बन्दर की घुड़की
विड़ाल की मंशा
बगुले की भक्ति
भेड़िये की भूख
कुत्ते का छिछोरापन
आदि‚इत्यादि
लेकिन–वेकिन
सका न सीख।
खोजता रहा
भुजाओं की ताकत में
मन के संकल्प में
संघर्ष के तपिश में
पूजा और प्रार्थना में
अपना नसीब।
रहा गरीब।
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