किसानों की पुकार,सुन लो सरकार!!
मैं इतना ही भरोसा, तो आपसे चाहता हूं
जो निर्धारित किया है मुल्य को आपने साहब,
हो खरीदी उसी पर, मेरी फसलों की जनाब,
बस यही तो मैं अपनी आमदनी चाहता हूं!
नहीं है चाह मुझको, गाड़ी और बंगलों की,
सिर पर हो छत इतनी-ही, अपने सिरों के लायक,
वैसे तो मैं झोपड़ी में भी रहने की जुगत जानता हूं,
दो जून का भोजन,करा सकूं सुकून से, अपने परिजनों को,
बस इतनी ही तो खुशहाली को मैं चाहता हूं!
होंगी पगारें जिनकी, थोड़ी या बहुत सी भी,
मुझको यह गिला नहीं है,ना रहा कभी,
मुझको तो मेरी फसल की वो कीमत दिला दो,
जिसे न्यूनतम माना है आपने ही,
गारंटी कानून की बना दो इसे,
बस इतनी सी ही बात को मैं चाहता हूं!
ये कारोबारी,ये बाणीज्य के ब्यापारी,
नहीं हैं गैर अपने, यह मैं मानता हूं,
उगाएंगे हम, बेचेंगे ये ही, दोनों ही मिलजुल कर इसे निभाएंगे,
अपनी-अपनी गृहस्थियों को हम चलाएंगे ,
ना शोषण हो हमारा,ना उपभोक्ता का हो दोहन,
ऐसी कोई प्रणाली अब आप ही बना दो,
बस इतनी सी ही चाहत, मैं आपको जताना चाहता हूं!
किसान और सरकार का ,साथ है चोली दामन का,
आज हैं हम तुम्हारे द्वारे, कभी तुम भी तो आए थे हमारे द्वारे,
हमने तो भरपूर सत्कार किया है,
दूसरी बार भी तुम ही एतबार किया है,
जिन्होंने किया था हमसे छल, किया हमने उन्हें बे दखल,
अब तुम भी तो उस राह को ना अपनाओ,
आओ आकर अपना फर्ज निभाओ,
बस इतना ही बतलाना चाहता हूं,
एम एस पी पर हो खरीदी किसान के फसल की,
आज तो मैं बस इतना ही बताना चाहता हूं!!