किसने कहा, ज़िन्दगी आंसुओं में हीं कट जायेगी।
किसने कहा, ज़िन्दगी आंसुओं में हीं कट जायेगी,
खुशी की लहर, कभी तो मुस्कुराती हुई चली आएगी।
बंजर ये धरती, कब तक दरारें हीं दिखाएगी,
लहलहाती फ़सलें, कभी इसकी गोद भी भर जायेगी।
भटके हुए पंछियों को, ये दुनिया कब तक लुभाएगी,
एक न एक दिन यादें, इनकी भी घर वापसी कराएगी।
भ्रम और धोख़े की स्याही, कभी तक झूठ फैलाएगी,
एक दिन सत्य की कलम, स्वयं हीं खुद को चलाएगी।
मंजिल तेरी राहों से, कब तक मिलने से कतराएगी,
मुक़म्मल वो जहां, एक दिन तेरे पैरों से लिपट जायेगी।
बंद दरवाजे कब तक, तेरी आस को तुड़वाएगी,
नए आयामों के द्वार, तेरी शिद्दत हीं खुलवाएगी।
अवसाद के अंधेरों में, तेरी ग़र्दिशें तुझे भटकायेंगी,
पर सितारों की दुआएं, एक दिन तुझे ढूंढ लाएगी।
ज़िन्दगी के दुखों का बोझ, तू कब तक उठाएगी,
क्षमा बनेगा अस्त्र एक दिन, और उन्मुक्त हो तू गुंगुनायेगी।
परछाइयाँ कब तक, तेरे अक्स को छुपाएगी,
एक दिन सूरज की किरणें, तेरे अस्तित्व को चमकायेगी।
किनारों से टकराकर, कब तक तू मौत में समायेगी,
बवंडर बनकर एक दिन, तू सबको डुबाएगी।
अतीत से मिले घावों को, कब तक तू सहलाएगी,
पराकाष्ठा उस पीड़ा की, मरहम बनकर तुझे दिखाएगी।