“किन्नर”
“किन्नर”
जनमती है उसको भी
कोई माँ की कोख,
उतनी ही वेदना से जैसे
आते हैं सब लोग।
पहले ही गोद मगर
तिरस्कार से मुँह फेर लेती,
फिर भी माँ की ममता
उसे दर्द छुपा कर देखती।
“किन्नर”
जनमती है उसको भी
कोई माँ की कोख,
उतनी ही वेदना से जैसे
आते हैं सब लोग।
पहले ही गोद मगर
तिरस्कार से मुँह फेर लेती,
फिर भी माँ की ममता
उसे दर्द छुपा कर देखती।