किनारा चुन लिया…
खिलते हो फूल या कांटे उन को पूछा न ज़रा,
एक सुनहरा- सा ख्वाब बुन लिया है ज़रा।
शायद कहीं तेज़ हुई दिल की वो धड़कनें,
प्यार की उस आवाज़ को सुन लिया है ज़रा।
बीखर न जाये कहीं तस्वीर ही पलक झपकते,
याद संजोेकर मूंद लिया आंखो को है ज़रा।
हों न जुदा राह में कीया तो था वादा कभी,
फिर भी यूंही उनसे रूठ भी लिया है ज़रा।
ऐक भंवर दिल की गहराइँ में समेटा था कभी,
शायद कहीं अपना किनारा चून लिया है ज़रा।
– मनीषा ‘जोबन ‘