किताब का आखिरी पन्ना
मत बनाओ औरत को कभी
किताब का आखिरी पन्ना
लापरवाह, घमण्डी, अलहदा
संकोची और शर्मीली कहकर,
दरअसल
वो जीती है
जमाने के सारे गमों को सहकर,
वो पीती है
हर अहसासों को रह-रह कर।
मेरी प्रकाशित 19 वीं काव्य-कृति :
‘बराबरी का सफर’ से चन्द पंक्तियाँ।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
टैलेंट आइकॉन : 2022-23