कितना बदल गया राजनीतिक आचार
कितना बदल गया राजनीतिक आचार
नेताओं ,सरकारों का आचार व्यवहार
लोकतंत्र तंत्र का मूल रुप पूर्ण परतंत्र
स्वतंत्र देश में नहीं रह पाए कोई स्वतंत्र
यहाँ होने लगा अब राजनीतिक व्यापार
विधायक-सांसद बिकते हैं खुले बाजार
जहाँ जब होने लगे नेता का अपहरण
कैसे रह पाएंगे सुरक्षित आम जन गण
जनता जिनको मत देकर है जितवाए
प्रतिनिधि वो खुद बिक दल छोड़ जाए
राजनेताओं का नित बदल रहा व्यवहार
साहूकार,सौदागर हाथ में है राजदरबार
विचारधारा तो अब हो गई है धारा धारा
चहुंओर फैला है राजनीतिक अंधियारा
खुद जो कहता है राजनीतिक चाणक्य
उसमे नहीं है कोई गुण चाणक्य वाक्य
धन दौलत तराजू मे रहता सदैव तोल
नहीं अब सियासी नीति मूल्यों का मोल
अब जो है जितना झूठा,बेईमान,बेकार
जनार्दन विश्वास बेच बनाता है सरकार
मूल्य,नीति,असूलों से भटकी राजनीति
वैर, विरोध,अनीति पर टिकी राजनीति
राजनीतिज्ञ खूब भरें चुनाव पूर्व हूंकार
चुनावापरांत जाती है सदैव जनता हार
गरीबी,भुखमरी ,बेरोजगारी के जो मुद्दे
सत्ता प्राप्ति बाद हो जाएं सर्वगौण मुद्दे
राजविद्या में नहीं रहा संस्कृति संस्कार
जाने कब रुकेगा राजनीतिक तिरस्कार
क्या कभी जनता की हो पाएगी भलाई
या सदा यूँ ही होती रहेगी जनता रुखाई
कब तक भरेंगे निज जेबें देश रखवाले
कहीं रख ना दे देश गिरवीं किसी हवाले
सुनो ! जनता अब हो जाओ तुम सचेत
नहीं तो ये सियासतदार कर देंगे अचेत
सुखविंद्र सिंह मनसीरत