कितना छुपाऊँ, कितना लिखूँ
समझ नहीं आता
किस पर लिखूँ ,
आप ही बतलाओ ना
कितना छुपाऊँ
और कितना लिखूँ ?
तन पर कपड़ा नहीं
न सर पर छत,
जहाँ भी नजर डालो
हर जगह मुसीबत।
घूम रहा बच्चा
गली में नंग-धड़ंग,
इक्कीसवीं सदी में भी
मन लोगों का तंग।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
नेल्सन मंडेला ग्लोबल
ब्रिलियंस अवार्ड प्राप्त।