कितना कुछ बदल गया है इन दिनों
कितना कुछ बदल गया है इन दिनों
अब नहीं खिलते हैं वो कचनार
न ही खिलती हैं वो चम्पा और चमेली भी
नहीं बिखेरती रातरानी भी वो पहले सी खुश्बू
सभी तो भूल चुके हैं अपने आप को
और न खत्म होने वाली
चाहतों को पाने
गुम हैं सभी
दुनिया की अंधी दौड़ में
…….क्रमशः
लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
बैतूल