किछो ने करू (हास्य कविता)
किछो ने करू
अहांके कोन चिंता?
तै हरदम चुपे रहू
अहां सब चितें टा करू
समस्या नेदान मे किछो ने करू
जोगारी पुरूस्कारी बनू,
हरदम लाॅबिक पछोड़ धेने रहू
मैथिली मे एहिना होइत एलै,
विरोध भेला पर लोक के ठकैत रहू
मानकीकरण स मैथिली के खंडित करू
अहिं टा काबिल ज्ञानी
अनकर लेखनी के कोनो मोजर ने दियौ
आयोजन टा मे पाग पहिर बमकल फिरू
अहीं टा किताब लिखने पढने लिखलौ
अनका बेर इ कहू जे ओहिना लिखलकै
के रोकि लेत अहाँ के?
सब अहिंक दियाद संगे ठार
मैथिली मे खूम वर्ग भेद भैइए रहलै
हमरो अहाँ के हइ बूझल
विरोधक कोन बेगरता के करत राड़
कारीगर के कहबाक भाव ने बुझू
आन जाति ने अकदामी मे सोनहिया जाए
ओकरो कहूं नाम ने भ जाइ
पिछलगुआ बना ओकरा भरमेने रहू
अपना सुआरथे निब्बदी मारने चूप्पे रहू
पिछलगुआ किए बिरोध करत
जी हजूरी के फिराक मे रहत
अहूँ त सैह चाहि जे ओ हो हो करै
आ मैथिली बपौती मे हमहीं टा रही
मिथिला मैथिलीक आयोजन करू
टाइटल जातिक षडयंत्र अहिंक रचल
किशन बड्ड अलूइर ने? ओहेन की प्रभावी लिखत?
सब मंचदौग्गा साहित्यकार बनल रहू.
©डाॅ किशन कारीगर
(मूल नाम- डाॅ कृष्ण कुमार राय)