किंकर्तव्यविमूढ़
सोचता हूं कुछ लिखूँ ,
वर्तमान त्रासदी से प्रभावित अंतर्व्यथा पर लिखूँ ,
या चारों तरफ व्याप्त कुशासन अराजकता पर लिखूँ ,
या राजनीति के दोहरे मापदंड पर लिखूँ ,
या गिरते सामाजिक मूल्यों एवं मानवीय गुणों के ह्रास
पर लिखूँ ,
या देश की गिरती अर्थव्यवस्था एवं आर्थिक गुलामी
पर लिखूँ ,
या प्रशासन की निरंकुशता एवं विपक्ष की प्रतिरोधक बलहीनता पर लिखूँ ,
या निरीह जनता की राजनीतिक मोहरे बनी विवशता
पर लिखूँ ,
या दिशाहीन बेरोजगार युवाओं के अंधकार में डूबे भविष्य पर लिखूँ ,
या सामाजिक उत्पीड़न से त्रस्त नारी मुक्ति एवं सशक्तिकरण पर लिखूँ ,
या धर्मांधता एवं सांप्रदायिकता फैलाने वाले कुत्सित तत्वों की स्वार्थी मानसिकता पर लिखूँ ,
या देश में सक्रिय आंतरिक विघटनकारी तत्वों के मंतव्यों
पर लिखूँ ,
या न्याय प्रणाली एवं प्रशासन के दोहरे मापदंड पर लिखूँ ,
विचारों के प्रवाह में दिन रात डूबता उतरता रहता हूँ,
ह्रदय में स्पंदित भाव उभर कर अभिव्यक्ति के शब्द नहीं बन पाते ,
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सृजनविहीन शून्य की ओर तकता रह जाता हूँ ,