काश, हमारी ये उम्र ना झलकती….
काश, हमारी ये उम्र ना झलकती….
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काश ये उम्र ना झलकती !
दुनिया मेरी ओर ही तकती !
एक सुहानी शाम तो बनती !
ढ़ेर सारे अरमान तो सजते !!
चेहरे पे झुर्रियों को देखकर ,
भाग जाते हैं सारे दिलवाले !
इस उम्र को हम छुपाएं कैसे ,
कैसे बन जाएं हम मतवाले !!
जब भी किसी पार्टी में मैं जाता !
उम्र ही सदा आड़े मेरे आ जाता !
बालाऍं तो बगल से गुजर जाती !
एक नज़र भी ना मुझपे दौड़ाती !!
काश, हमारी ये उम्र ना झलकती…..
काश यदि कुछ ऐसा हो पाता !
मैं भी कुछ पल बच्चा बन जाता !
बच्चों जैसे हाव-भाव मेरे भी होते !
चेहरे पे कभी कोई सिकन ना होता !!
आज तो हर तरफ ऐसा ही ज़माना है !
सब कोई मौज-मस्ती का ही दीवाना है !
अनुभव की तो ज़रुरत ही नहीं किसी को ,
बस, आधुनिकता का राग ही अलापना है !!
भारतीय संस्कृति धीरे-धीरे लुप्त हो रही !
पाश्चात्य संस्कृति युवाओं पे हावी हो रही !
चमक-दमक उनकी सोच का है मुख्य बिंदु ,
चाल-चलन, आचार-विचार प्रभावित हो रही !!
कभी-कभार तो ये सब मेरा भी जी ललचाता !
जब कभी मैं चमचमाते माहौल में चला जाता !
काश, इस युग में इनके संग मैं भी चल पाता !
काश , नए युग की स्टाईल मैं भी दिखा पाता !!
काश, हमारी ये उम्र ना झलकती…..
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 07-08-2021.
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