काश तुम समझ सको
काश तुम समझ सको
मेरे बोलने में
और तुम्हारे समझने में
उतना ही अंतर है जितना
सड़क पर अपने अधिकारों के लिए
लड़ते चीखते मजदूर में और
आर्ट गैलरी में टँगी
मजदूर की चीखती तस्वीर में
मेरे बोलने में
और तुम्हारे समझने
में उतना ही अंतर है जितना
गौ रक्षा के लिए
सरकार समाज और प्रवचनकर्ताओं के
निष्फल प्रयास में
और सड़क पर हजारों
भूखी मरी पड़ी गायों में।
मेरे बोलने में
और तुम्हारे समझने
में उतना ही अंतर है जितना
नारी समानता और विमर्श के
आंदोलनों में जलती मशालों
और
सड़कों पर बलात्कार के बाद
कुचल कर मारी गईं बेटियों की चीत्कारों में होता है।
मेरे बोलने में
और तुम्हारे समझने में
उतना ही अंतर है जितना
बिना जरूरत के दो तीन पुरानी पेंशन लेने वाले
माननीयों की मधुर मुस्कुराहटों में
और जिंदगी भर सरकारी नौकरी कर वृद्धावस्था में आठ सौ रुपये
महीने की नई पेंशन लेने वाले
वृद्ध के चिंतित चेहरे में।
मेरे बोलने में
और तुम्हारे समझने में
उतना ही अंतर है जितना
चुनावों के समय किये गए वादों और चरणों में गिरते माथों
और बाद में लतियाये गए झिड़की खाये मौन मतदाता में।
तुम मानो या न मानो
उतना ही अंतर है जितना
दृढ़ता से बोले गए झूठ में
और सकपकाए सत्य में होता है।
सिर्फ उतना ही अंतर है जितना
मुट्ठी भर इंडिया जो हमारे मतों से बन बैठते हैं सरकार
और विशाल भारत मौन स्वीकारता है उस झूठ को
जो वो कहते हैं यह सत्य है।
अंतर उतना ही है जितना
तुम्हारा गुलाबी लहज़ा
और उसके नीचे छिपे
खूंरेज खंजर।
सच काश मेरे बोलने को तुम
समझ सको और तुम्हारी
समझ पर मैं बोल सकूँ।
सुशील शर्मा