. काला काला बादल
जब कभी भी वो काला काला बादल
नीले नीले से सुन्दर आकाश में मंडराता है
सूरज चाॅंद और तारों की चमक को भी
क्षण भर में ही वो अपना ग्रास बनाता है
गहरी डरावनी अंधेरी हो जाती है तब रातें
मन भी सबका पूरा व्याकुल हो जाता है
सूरज की किरणों के रुक जाने से तो जैसे
दिन का उजाला भी कहीं खो जाता है
ग्रीष्म ऋतु की गर्मी जब तन को लगे तपाने
लोग जल बिन तड़प तड़प कर तरसता है
वही बादल फिर अमृत जल की बूंदें बनकर
तपती धरा पर झम झम कर बरसता है
मन हो जाता है सबका निर्मल और शांत
बेचैनी भी कहीं भाग जाती है तब तन से दूर
वही बादल फिर अपना सा लगने लगता है
जिसे देख कर नाच उठता है तब मन मयूर