*कालचक्र*
अतीत !
जो गया है बीत –
न खुद को दुहरा सकता है,
न अपना अस्तित्व ही मिटा सकता है
कुछ मीठे पलों की स्मृतियाँ –
जीवनभर लुभाएँगी –
कुछ तीखे पलों की तल्खियाँ –
जीवन भर सताएँगी –
इन दोनों अनुभूतियों के बोझ तले
देख कहीं तुम दब न जाना –
और जीवन के अनमोल पलों को
खोकर व्यर्थ न रोना,
न पछताना –
भविष्य !
जो है अदृश्य –
नियत समय से पहले
आ ही नहीं सकता –
और लाख प्रयत्न कर भी मनुष्य
आज उसे जी नहीं सकता –
भविष्य के ही ताने-बाने में
खोया रहेगा इंसान अगर –
क्लिष्ट बना देगा खुद ही
अपने जीवन की आसान डगर –
वर्तमान !
है हर पल विद्यमान –
इसे झेलना मुश्किल हो
या हो आसान –
इसके अस्तित्व को
झुठला नहीं सकता कोई –
यह वह दरिया है
जिसमे उतरे बिना
उसपार जा नहीं सकता कोई –
यह अनुभव है,
कल्पना नहीं –
यथार्थ है,
योजना नहीं –
इसलिए,
जिस पल को अभी
तू जी रहा है,
उसको ही जी भर कर जी –
न बीते कल की छाँव में जी,
न आनेवाले से डर कर जी –
कुदरत के कानून को
इतना मान तो देना होगा –
“इस पल को खुशहाल बना लूँ”
यह संकल्प तो लेना होगा ।