#कारण और कार्य – ‘वंशस्थ छंद’
#वंशस्थ छंद की परिभाषा और कविता
#वंशस्थ छंद
यह एक वर्णिक छंद है । इसमें चार चरण या पद होते हैं । इसमें बारह अक्षर होते हैं ; जो क्रमशः जगण,तगण,जगण एवं रगण के क्रम में आते हैं।
जगण=ISI/तगण=SSI/जगण=ISI/रगण=SIS
#वंशस्थ छंद की कविता/कारण और कार्य
ISI/SSI/ISI/SIS
121/221/121/212
बिना चले मंज़िल क्या कभी मिली
बहार आई तब ही कली खिली
कशीश मानो दिल में कहीं पली
जुबान की वो सच बात हो चली
हमें सदा धर्म अदायगी पढ़ी।
हमें सदा कर्म अदायगी गढ़ी।
चले इरादा कर सादगी लिए,
यही अदा थी सब के दिलों चढ़ी।
भला किया काम कला मिला चला।
सदा ढ़ला साख बना सिला पला।
हिला-हिला कष्ट कटा झुका टला,
फ़िदा हुआ ताज़ सजा खरा फला।
मज़ा तजा कर्म किया फला खिला।
सभी दिलों में सज भा गया लला।
हरा-हरा हाल हुआ झरा गिला,
कभी बुझा वो भजता चला गला।
#आर.एस.’प्रीतम’